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कार्तिक माह में दीपावली के दूसरे दिन गोवरधन पूजा होती है। यह पूजा गोवर्धन पर्वत और गौधन से संबंधित है। महिलाएं गोबर से पर्वत और बैलों की आकृतियां बनाती हैं। मालवा में भील आदिवासी पशुओं के सामने अवदान गीत होड़ गाते हैं। गौड़ या भूमिया जैसी जातिया यह पर्व नहीं मनाती पर पशु पालक अहीर इस दिन खेरदेव की पूजा करते हैं। चंद्रावली नामक कथागीत भी इस अवसर पर गाया जाता है।
गोंडों का नारायण देव के सम्मान में मनाया जाने वाला यह पर्व सुअर के विवाह का प्रतीक माना जाता है। आज कल यह पर्व शनै:-शनै: लुप्त होता जा रहा है। इस उत्सव में सुअर की बलि दी जाती है। परिवार की समृद्धि और स्वास्थ्य के लिए इस तरह का आयोजन एक निश्चित अवधि के बाद करना आवश्यक होता है।